तुलसीदास जी के बारे में
[caption id="attachment_216" align="aligncenter" width="676"] image source : wikipedia.org[/caption]
दोस्तों तुलसीदास एक 16वी शताब्दी के एक महान कवी थे। इनकी रचनाए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इनका जन्म सं 1589 में राजापुर, बाँदा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी देवी था। इन्होने बचपन से ही वेद, पुराण एवं उपनिषदों की शिक्षा मिली थी। इनका विवाह रत्नावली के संग हुआ था। इनके पुत्र का नाम तारक था। गोस्वामी तुलसीदास जी हिन्दू धर्म के उपाशक थे। यह उस ज़माने के प्रसिद्ध कवी एवं संत थे। इनके गुरु नरहरिदास जी थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ है
- रामचरितमानस
- विनयपत्रिका
- दोहावली
- कवितावली
- हनुमान चालीसा
- वैराग्य संदीपनी
- जानकी मंगल
- पार्वती मंगल आदि
तुलसीदास के दोहे
1. वाम दिसी जानकी, लखन दाहिनी ओर
ध्यान सकल कल्याणमय, सुरतरु तुलसी तोर
भगवान श्रीरामचंद्र के दाहिने ओर श्रीजानकी है. बाहिने ओर श्रीलक्ष्मण है. इनका सब का ध्यान कल्याणमय है. हे तुलसी, तेरे लिए तो मानो ये मनचाहा फल देनेवाला कल्पवृक्ष ही है.
2.सीता लखन समेत प्रभु, सोहत तुलसीदास
हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल बास
तुलसीदास कहते है, श्री सीता और लक्ष्मण सह प्रभु रामचंद्र शोभा दे रहे है और देवतागण आनंदसे पुष्पवृष्टि कर रहे है. भगवान का यह सगुन स्वरुप सुमंगल – परम कल्याणकारक है.
3.पंचबटी बट बिटप तर, सीता लखन समेत
सोहत तुलसीदास प्रभु, सकल सुमंगल देत
पंचवटी में वटवृक्ष के निचे सीता लक्षमण के साथ में रामप्रभु शोभा दे रहे है. तुलसीदास कहते है की, इस प्रकार भगवान का ध्यान करनेसे सब मांगल्य की प्राप्ति होती है.
4.चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत
राम नाम जप जापकहि, तुलसी अभिमत देत
- श्रीसीता और लक्ष्मण सह प्रभु रामचंद्र का चित्रकूट में हर समय निवास रहता है. तुलसीदास कहते है की वह रामप्रभु रामनाम का जप करनेवाले को इच्छित फल देते है.
5.पय अहार फल खाई जपु, राम नाम षट मास
सकल सुमंगल सिद्धि सब, करतल तुलसीदास
- छे महीने तक केवल दूध या फलाहार करके रामनाम का जप करो. तुलसीदास कहते है की, ऐसा करनेसे सबप्रकारसे कल्याण होकर सब सिद्धि प्राप्त होती है.
6.राम नाम पर राम ते, प्रीति प्रतीति भरोस
सो तुलसी सुमिरत सकल, सगुण सुमंगल कोस
- तुलसीदास कहते है, जो रामनाम परायण है और रामनाम में रामसे भी अधिक विश्वास, प्रीति रखते है, वो रामनाम का स्मरण करतेही समस्त सद्गुण और सुमंगल का कोष, खजाना बन जाते है.
7.हरण अमंगल अघ अखिल, करण सकल कल्याण
रामनाम नित कहत हर, गावत बेद पुराण
- रामनाम ये सब अमंगल और पापोका हरण करनेवाला है और सब प्रकारसे कल्याण करनेवाला है. इसीलिए श्री शंकर सदा सर्वदा रामनाम जपते है और वेदपुराण भी नाम का महत्त्व वर्णन करते है.
8.जल थल नभ गति अमित अति, अग जग जीव अनेक
तुलसी तो से दिन कह, राम नाम गति एक
- जग में अनेक प्रकार के असंख्य जीव है. किसीकी गति चर में है तो किसीकी जल में; किसीकी पृथ्वी पर तो किसीकी आकाश में है; परन्तु हे तुलसी, तेरेजैसे दिनों के लिए रामनाम ही एकमात्र गति है.
9.रसना सापिनी बदन बिल, जे न जपहि हरिनाम
तुलसी प्रेम न राम सो, ताहि विधाता बाम
- तुलसीदास कहते है की, जो हरिनाम जपते नहीं उनकी जिव्हा सर्प के प्रमाण है और उनका मुख सर्प का घर है. जिसको रामप्रेम नहीं उसको विधाता प्रतिकूल होगया है ऐसेही कहना पड़ेगा.
10.राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो |
11.नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
अर्थ : राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |
12.तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |
13.सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
अर्थ : शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते |शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |
14.सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
अर्थ : स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |
15.मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |
16.सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है |
17.तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।
अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |
18.सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
अर्थ : जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |
19.दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|
तुलसीदास जी के दोहो का महत्व
[caption id="attachment_217" align="aligncenter" width="629"] image source : wikipedia.org[/caption]
दोस्तों तुलसीदास जी के दोहो का हमारी ज़िन्दगी में बहुत ज्यादा महत्व है। इनके हर एक दोहे में बहुत ही गहरा मतलब होता है। इनके दोहे किसी व्यक्ति की ज़िन्दगी बदलने की ताकत रखते है। यदि किसी व्यक्ति ने इनके दोहो का मतलब समझ लिया और उसके कहे अनुसार अपनी ज़िन्दगी बिताने लगा तब वह हमेशा अपनी ज़िन्दगी ख़ुशी से बिताएगा। हम सभी इन दोहो से कुछ न कुछ जरूर सीखना चाहिए। इन दोहो में जीवन को ठीक ढंग से जीने का राज़ छिपा हुआ है।
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